
My rating: 5 of 5 stars
इस किताब के पढ़ने के बाद लगता है की हिन्दी किताबों के भी अच्छे दिन आ गये हैं | पिछले एक दो सालों मे एक से बढ़ कर एक किताबें हिन्दी मे आयी हैं | ये किताब भी उनमे से एक है| सीधी साधारण बोलचाल की भाषा जो हर किसी को समझ मे आए | और हाँ, ये किसी इंग्लीश किताब का हिन्दी मे अनुवाद नही है इसलिए भी इसके कॅरक्टर ओरिजिनल लगते हैं |
चलिए आइए अब स्टोरी की बात करते हैं | सीधी सादी स्टोरी है लेकिन बहुत ही बातुनी है इसके कॅरक्टर | कोई चुप ही नही होता ! जब बातचीत शुरू करते हैं तो करते ही रहते हैं और रुकते ही नही कहीँ | बीच बीच मे दुबारा पढ़ना पड़ता है की भाई कौन क्या कह रहा है | लेकिन ऐसा एक आध बार ही हुआ |
सुधा और चंदर एक साथ रहते हैं लेकिन सुधा शादी के लिए तैयार नही है , ये नये जमाने की लड़की है जो अपने पैरों पर खड़ी है और अपने मन का करती हैं बस यहीं से सारा झमेला सुरू शुरू होता है | चंदर भाई अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर हरिद्वार की तरफ रुख़ कर लेते है| वहाँ उन्हे एक और लड़की मिलती है जो भी सुधा की तरह है | फाइनली सब कुछ ठीक होता है लेकिन शादी ? ये आपको पढ़ कर ही पता करना होगा | लेकिन क्या शादी करना हमेशा ज़रूरी होता है ? वैसे भी शादी मे सबसे बड़ा नुकसान तो लड़की का ही होता है | सुरक्षा के नाम पर जिंदगी भर किसी का गुलाम बन जाती है |
खैर मुझे तो ये किताब बहुत अच्छी लगी ओर मेरे ख़याल से इसे 5 star तो मिलने ही चाहीए |
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