
My rating: 5 of 5 stars
यात्रा सँस्मरंण पर यह मैने पहली किताबपढ़ी है| लेखन का स्टाइल बहुत ही सरहनीय है और भाषा बिल्कुल सिंपल, जो किसी को भी समझ आ जाए| इस किताब को पढ़ने मे ज़यादा दिमाग़ नही लगाना पड़ा ओर ना ही बहुत ज़्यादा कुछ याद रखने की ज़रूरत पड़ी | बीच-बीच मे राइटर जिस तरह से लड़कियों की स्थिति को लेकर भारतीय समाज को लताड़ती हैं वो भी काफ़ी सराहनीय है, और इतने सलीके से कही है की पढ़ने वाला भी सोच मे पड़ जाए| इस किताब को पढ़ने से पहले मैने कभी खवाब मे नही सोचा था की कोई लड़की अकेले युरोप भ्रमण कर सकती वो भी उस तरीके से जैसा कि राइटर ने किया है | मेरे तो दिमाग़ के चक्षु खुल गये हैं और मेरे ख्याल से जो भी इस किताब को पढ़ेगा वो भी अब अपनी बेटियों, बहनो को शायद अब वो फ्रीडम दे जिसकी राइटर उमीद कर रहीं हैं | नही तो आने वाले समय मे लड़कियाँ खुद-ब-खुद छीन लेंगी|
यह संस्मरण युरोप के बारे मे बहुत सारी चीज़ें बताता है| जो मेरे लिए नई थी, जो शायद इसी तरह के संस्मरण मे कवर हो सकता था, जहाँ एक यूरोपियन मा अपनी बेटी को, जो वर्ल्ड टूर पर निकनलने वाली है, सलाह देती है की अगर रेप जैसी कोई घटना हो जाए तो anti pregnancy पिल ले लेना क्योंकि जंगली भेड़िए कहीं भी मिल सकते हैं | काश भरतीय माएँ भी ऐसी हो जाएँ तो लड़कियों का जीवन तोड़ा सा सरल हो जाए|
अब आते हैं किताब के फोटोग्रॅफ्स पर, पता नही क्यों फोटोग्रॅफ्स ब्लॅक & वाइट मे हैं ? अगर ये colored होते तो ज़्यादा अच्छा रहता | हो सकता मैने जो किताब पढ़ी वो शायद सस्ता संस्करण हो ?
सभी तरह से यह किताब पढ़ने के हिसाब से ठीक है | और, मै इसे 5/5 रेट करता हूँ|
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